प्रधानमंत्री जवाब दो
Posted on जून 7, 2011 by surenderachaturvedi
बाबा रामदेव के सत्याग्रह के दौरान 4-5 जून की रात्री में केन्द्र सरकार
के इशारे पर जो कुछ हुआ, उसे देश ही नहीं पूरी दुनिया के लोगों ने देखा।
सभी जानना चाहते हैं कि जितने भी लोग बाबा रामदेव के साथ अनशन पर बैठे
थे, वे क्या चाहते थे? वे सिर्फ इतना चाहते कि केन्द्र सरकार एक अध्यादेश
लाए जिसमें कहा जाए कि “विदेशो जमा कालाधन राष्ट्रीय संपत्ति है और
केन्द्र सरकार उसको वापस लाने के लिए वचनबद्ध है।”
यह मांग किसी राजनीतिक दल की नहीं है, यह मांग उन करोड़ों भारतीय की है,
जो अपने खून पसीने की कमाई को विभिन्न कर के रूप में भारत सरकार को
इसलिये देते हैं कि वे जिस देश में रहते हैं, उस देश का समग्र विकास हो,
हर हाथ को काम मिले, बच्चों को शिक्षा मिले, गांवों में आधारभूत सुविधाएं
उपलब्ध हो, हर खेत को पानी मिले, जिससे यह देश फिर गुलामी के दलदल में
नहीं फंसे और भारत स्वाभिमान के साथ फिर से उठ खड़ा हो।
प्रश्न यह उठता है कि क्या यह मांग गलत है? क्या भारत के नागरिकों को
चाहे वे करदाता हों या ना हों, उन्हैं यह अधिकार नहीं है कि वे देश के
विकास की मांग करें, वे सरकार से स्वच्छ प्रशासन की अपेक्षा करें । वे
देश की उस समस्या से मुक्ति की इच्छा भी व्यक्त करें जिससे आम आदमी
त्रस्त और परेशान है। क्या यह मांगें राजनीतिक हैं? जो लोग वहां इकटठा
हुए थे, वे अपने लिए आरक्षण नहीं मांग रहे थे, ना ही यह कह रहे थे कि
भारत में आतंक फैलाने के अपराध में फांसी की सजा पाए अफजल गुरू और
मोहम्मद कसाब को तत्काल फांसी दी जाए, ना ही उन्होंने किसी राजनीतिक
व्यक्ति का नाम अपने मंच से लिया था और ना ही उन्होंने प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह के मंत्रीमंडल में शामिल मंत्रियों के इस्तीफे की मांग की
थी। तो फिर ऐसा कौनसा कारण था कि केन्द्र सरकार ने पांडाल में सोये हुए
लोगों पर आक्रमण बोल दिया, उन पर आंसू गैस के गोले छोड़े, हवाई फायर
किये, मंच को आग लगाकर अफरा तफरी का माहौल बना दिया ? वृद्धों, महिलाओं
और बच्चों पर ना केवल लाठियां भांजी अपितु उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार
करते हुए घसीट घसीट कर बाहर निकाला।
आखिर कैसे हमारे लाचार और बेचारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जिनको यह पता
ही नहीं चलता कि उनकी सरकार में कितने मंत्रयिों ने कितना भ्रष्टाचार कर
लिया, उनमें अचानक इतनी ताकत आ जाती है कि वे कहने लगे कि इस कार्यवाही
के अलावा उनकी सरकार के पास और कोई विकल्प ही नहीं बचा था। भारत के हर
नागरिक को प्रधानमंत्री से यह प्रश्न पूछना चाहिये कि वे किनको बचाना चाह
रहे हैं? और जो लोग 4-5 जून की रात को पांडाल में थे, क्या उन्होंने
दिल्ली के एक भी नागरिक के साथ अभद्रता की थी? पुलिस या प्रशासन के साथ
असहयोग किया था? क्या बाबा रामदेव के आव्हान पर भारत भर से जो लोग वहां
पर आये थे, वे छंटे हुए गुंडे और बदमाश थे? क्या उनके पास प्राण घातक
हथियार थे ?
क्या वे स्थानीय नागरिकों के लिए खतरा बन गये थे? यदि ऐसा नहीं था, तो इस
बर्बर कार्यवाही का सरकार के पास क्या जवाब है? क्या सरकार यह भूल चुकी
है कि 15 अगस्त 1947 की मध्य रात्री को भारत एक लोकतांत्रकि देश के रूप
में दुनिया के सामने आ चुका है। भारत में रहने वाले लोगों के कुछ नागरिक
अधिकार भी हैं? जिनकी रक्षा के लिए हर लोकतांत्रकि सरकार जिम्मेदार है?
क्या जिस कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शिक्षा
प्राप्त की है, वहां उन्हें यही सिखाया और पढ़ाया गया था कि निर्दोष
नागरिकों और अपने संवैधानिक अधिकार के लिए लड़ने वाले लोगों के साथ
अमानवीय व्यवहार किया जाए। क्या प्रधानमंत्री के जन्मदाताओं ने उनकी हर
मांग का जवाब इसी अंदाज में दिया था, जैसा कि उनकी सरकार ने भारत के
नागरिकों के साथ किया? प्रश्न बहुत सारे हैं।
सवाल यह भी है कि यह सरकार भारत के नागरिकों को किस रूप में देखती है, और
जिन मतदाताओं के मतों पर जीतकर सत्ता प्राप्त करती है, उनके साथ किस तरह
का व्यवहार करती है। क्यों भारत के राजनेता हर मुद्दे का राजनीतिकरण कर
देते हैं? क्या भ्रष्टाचार सिर्फ राजनीतिक दलों का विषय है, इस पर भारत
की जनता को बोलने का कोई अधिकार ही नहीं है, जो भ्रष्टाचार से आकंठ
पीड़ित है? स्वतंत्र भारत में देश की आजादी के बाद भ्रष्टाचार के कई
मामले सामने आये, परंतु किसी भी सरकार ने कभी भी यह साबित करने की कोशिश
नहीं की कि वह किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को लेकर असहनशील है।
सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक तो यह है कि सत्तारूढ़ दल के पदाधिकारी या सरकार
के मंत्रियो ने एक बार भी देश की जनता से अपने कुकृत्य के लिए माफी नहीं
मांगी? और बजाय ए राजा, कनीमोझी, सुरेश कलमाडी, सोनिया गांधी, शरद पवार
और अजीत चव्हाण से यह पूछने के कि उनकी अकूत संपत्ति कहां से आई है, वे
बाबा रामदेव से यह पूछ रहे हैं कि इस सत्याग्रह को करने के लिए पैसा कहां
से आ रहा है? और बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण को नेपाली नागरिक
बताने वाले कांग्रेस के प्रवक्ता यह क्यों भूल जाते हैं कि उनकी पार्टी
की अध्यक्ष भी भारतीय नहीं है। और जो दिग्विजय सिंह बाबा रामदेव को महाठग
बता रहे हैं, उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि केंद्र सरकार के ४
मंत्री इस ठग से क्यों बात करने गए थे ?
यह तथ्य भी गौर करने लायक है कि जब से बाबा रामदेव ने सोनिया गांधी और
मनमोहन सरकार पर उनको जान से मार डालने के षड़यंत्र रचने का आरोप लगाया
है,और उन्हैं कुछ भी होने के लिए सोनिया गांधी को जिम्मेदार बताया है, तब
से पूरी कांग्रेस पार्टी बजाय देश से माफी मांगने के सोनिया गांधी के
बचाव में उतर आई है, और कांग्रेस के महामंत्री जनार्दन दिवेदी का यह कहना
कि ‘‘सत्याग्रही मौत से बचने के लिए महिलाओं के कपडे पहनकर भागता नहीं
है।’’ बाबा रामदेव के इस आरोप को पुष्ट ही करता है कि सरकार ने उनको
मारने का षड़यंत्र रचा था।
लेकिन सरकार और कांग्रेस को इतिहास को एक बार खंगाल लेना चाहिये। उन्हैं
यह याद रखना चाहिये कि भारत के नागरिकों का आत्मबल बहुत मजबूत है। जो
भारत 1200 साल की गुलामी सहने के बाद भी अपना अस्तित्व बचाये रख सकता है।
इंदिरा गांधी के कठोर आपातकाल को झेल सकता है, वह सत्ताधीशो की दमनकारी
मानसिकता से डरने वाला नहीं है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री स्व0
जयनारायण व्यास द्वारा आज से 60 साल पहले लिखी गई यह कविता उन सभी लोगों
के लिए प्रेरणा और चेतावनी हैं जो नागरिकों को सम्मान की निगाह से नहीं
देखते।
‘‘ भूखे की सूखी हडडी से,
वज्र बनेगा महाभयंकर,
ऋषि दधिची को इर्ष्या होगी,
नेत्र तीसरा खोलेंगे शंकर,
जी भर आज सता ले मुझको,
आज तुझे पूरी आजादी,
पर तेरे इन कर्मो में छिपकर,
बैठी है तेरी बरबादी,
कल ही तुझ पर गाज गिरेगा,
महल गिरेगा, राज गिरेगा,
नहीं रहेगी सत्ता तेरी,
बस्ती तो आबाद रहेगी,
जालिम तेरे इन जुल्मों की,
उनमें कायम याद रहेगी।
अन्न नहीं है, वस्त्र नहीं है,
और नहीं है हिम्मत भारी,
पर मेरे इस अधमुए तन में
दबी हुई है इक चिंगारी
जिस दिन प्रकटेगी चिंगारी
जल जायेगी दुनिया सारी
नहीं रहेगी सत्ता तेरी,
बस्ती तो आबाद रहेगी,
जालिम तेरे इन जुल्मों की,
उनमें कायम याद रहेगी।
Posted on जून 7, 2011 by surenderachaturvedi
बाबा रामदेव के सत्याग्रह के दौरान 4-5 जून की रात्री में केन्द्र सरकार
के इशारे पर जो कुछ हुआ, उसे देश ही नहीं पूरी दुनिया के लोगों ने देखा।
सभी जानना चाहते हैं कि जितने भी लोग बाबा रामदेव के साथ अनशन पर बैठे
थे, वे क्या चाहते थे? वे सिर्फ इतना चाहते कि केन्द्र सरकार एक अध्यादेश
लाए जिसमें कहा जाए कि “विदेशो जमा कालाधन राष्ट्रीय संपत्ति है और
केन्द्र सरकार उसको वापस लाने के लिए वचनबद्ध है।”
यह मांग किसी राजनीतिक दल की नहीं है, यह मांग उन करोड़ों भारतीय की है,
जो अपने खून पसीने की कमाई को विभिन्न कर के रूप में भारत सरकार को
इसलिये देते हैं कि वे जिस देश में रहते हैं, उस देश का समग्र विकास हो,
हर हाथ को काम मिले, बच्चों को शिक्षा मिले, गांवों में आधारभूत सुविधाएं
उपलब्ध हो, हर खेत को पानी मिले, जिससे यह देश फिर गुलामी के दलदल में
नहीं फंसे और भारत स्वाभिमान के साथ फिर से उठ खड़ा हो।
प्रश्न यह उठता है कि क्या यह मांग गलत है? क्या भारत के नागरिकों को
चाहे वे करदाता हों या ना हों, उन्हैं यह अधिकार नहीं है कि वे देश के
विकास की मांग करें, वे सरकार से स्वच्छ प्रशासन की अपेक्षा करें । वे
देश की उस समस्या से मुक्ति की इच्छा भी व्यक्त करें जिससे आम आदमी
त्रस्त और परेशान है। क्या यह मांगें राजनीतिक हैं? जो लोग वहां इकटठा
हुए थे, वे अपने लिए आरक्षण नहीं मांग रहे थे, ना ही यह कह रहे थे कि
भारत में आतंक फैलाने के अपराध में फांसी की सजा पाए अफजल गुरू और
मोहम्मद कसाब को तत्काल फांसी दी जाए, ना ही उन्होंने किसी राजनीतिक
व्यक्ति का नाम अपने मंच से लिया था और ना ही उन्होंने प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह के मंत्रीमंडल में शामिल मंत्रियों के इस्तीफे की मांग की
थी। तो फिर ऐसा कौनसा कारण था कि केन्द्र सरकार ने पांडाल में सोये हुए
लोगों पर आक्रमण बोल दिया, उन पर आंसू गैस के गोले छोड़े, हवाई फायर
किये, मंच को आग लगाकर अफरा तफरी का माहौल बना दिया ? वृद्धों, महिलाओं
और बच्चों पर ना केवल लाठियां भांजी अपितु उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार
करते हुए घसीट घसीट कर बाहर निकाला।
आखिर कैसे हमारे लाचार और बेचारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जिनको यह पता
ही नहीं चलता कि उनकी सरकार में कितने मंत्रयिों ने कितना भ्रष्टाचार कर
लिया, उनमें अचानक इतनी ताकत आ जाती है कि वे कहने लगे कि इस कार्यवाही
के अलावा उनकी सरकार के पास और कोई विकल्प ही नहीं बचा था। भारत के हर
नागरिक को प्रधानमंत्री से यह प्रश्न पूछना चाहिये कि वे किनको बचाना चाह
रहे हैं? और जो लोग 4-5 जून की रात को पांडाल में थे, क्या उन्होंने
दिल्ली के एक भी नागरिक के साथ अभद्रता की थी? पुलिस या प्रशासन के साथ
असहयोग किया था? क्या बाबा रामदेव के आव्हान पर भारत भर से जो लोग वहां
पर आये थे, वे छंटे हुए गुंडे और बदमाश थे? क्या उनके पास प्राण घातक
हथियार थे ?
क्या वे स्थानीय नागरिकों के लिए खतरा बन गये थे? यदि ऐसा नहीं था, तो इस
बर्बर कार्यवाही का सरकार के पास क्या जवाब है? क्या सरकार यह भूल चुकी
है कि 15 अगस्त 1947 की मध्य रात्री को भारत एक लोकतांत्रकि देश के रूप
में दुनिया के सामने आ चुका है। भारत में रहने वाले लोगों के कुछ नागरिक
अधिकार भी हैं? जिनकी रक्षा के लिए हर लोकतांत्रकि सरकार जिम्मेदार है?
क्या जिस कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शिक्षा
प्राप्त की है, वहां उन्हें यही सिखाया और पढ़ाया गया था कि निर्दोष
नागरिकों और अपने संवैधानिक अधिकार के लिए लड़ने वाले लोगों के साथ
अमानवीय व्यवहार किया जाए। क्या प्रधानमंत्री के जन्मदाताओं ने उनकी हर
मांग का जवाब इसी अंदाज में दिया था, जैसा कि उनकी सरकार ने भारत के
नागरिकों के साथ किया? प्रश्न बहुत सारे हैं।
सवाल यह भी है कि यह सरकार भारत के नागरिकों को किस रूप में देखती है, और
जिन मतदाताओं के मतों पर जीतकर सत्ता प्राप्त करती है, उनके साथ किस तरह
का व्यवहार करती है। क्यों भारत के राजनेता हर मुद्दे का राजनीतिकरण कर
देते हैं? क्या भ्रष्टाचार सिर्फ राजनीतिक दलों का विषय है, इस पर भारत
की जनता को बोलने का कोई अधिकार ही नहीं है, जो भ्रष्टाचार से आकंठ
पीड़ित है? स्वतंत्र भारत में देश की आजादी के बाद भ्रष्टाचार के कई
मामले सामने आये, परंतु किसी भी सरकार ने कभी भी यह साबित करने की कोशिश
नहीं की कि वह किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को लेकर असहनशील है।
सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक तो यह है कि सत्तारूढ़ दल के पदाधिकारी या सरकार
के मंत्रियो ने एक बार भी देश की जनता से अपने कुकृत्य के लिए माफी नहीं
मांगी? और बजाय ए राजा, कनीमोझी, सुरेश कलमाडी, सोनिया गांधी, शरद पवार
और अजीत चव्हाण से यह पूछने के कि उनकी अकूत संपत्ति कहां से आई है, वे
बाबा रामदेव से यह पूछ रहे हैं कि इस सत्याग्रह को करने के लिए पैसा कहां
से आ रहा है? और बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण को नेपाली नागरिक
बताने वाले कांग्रेस के प्रवक्ता यह क्यों भूल जाते हैं कि उनकी पार्टी
की अध्यक्ष भी भारतीय नहीं है। और जो दिग्विजय सिंह बाबा रामदेव को महाठग
बता रहे हैं, उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि केंद्र सरकार के ४
मंत्री इस ठग से क्यों बात करने गए थे ?
यह तथ्य भी गौर करने लायक है कि जब से बाबा रामदेव ने सोनिया गांधी और
मनमोहन सरकार पर उनको जान से मार डालने के षड़यंत्र रचने का आरोप लगाया
है,और उन्हैं कुछ भी होने के लिए सोनिया गांधी को जिम्मेदार बताया है, तब
से पूरी कांग्रेस पार्टी बजाय देश से माफी मांगने के सोनिया गांधी के
बचाव में उतर आई है, और कांग्रेस के महामंत्री जनार्दन दिवेदी का यह कहना
कि ‘‘सत्याग्रही मौत से बचने के लिए महिलाओं के कपडे पहनकर भागता नहीं
है।’’ बाबा रामदेव के इस आरोप को पुष्ट ही करता है कि सरकार ने उनको
मारने का षड़यंत्र रचा था।
लेकिन सरकार और कांग्रेस को इतिहास को एक बार खंगाल लेना चाहिये। उन्हैं
यह याद रखना चाहिये कि भारत के नागरिकों का आत्मबल बहुत मजबूत है। जो
भारत 1200 साल की गुलामी सहने के बाद भी अपना अस्तित्व बचाये रख सकता है।
इंदिरा गांधी के कठोर आपातकाल को झेल सकता है, वह सत्ताधीशो की दमनकारी
मानसिकता से डरने वाला नहीं है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री स्व0
जयनारायण व्यास द्वारा आज से 60 साल पहले लिखी गई यह कविता उन सभी लोगों
के लिए प्रेरणा और चेतावनी हैं जो नागरिकों को सम्मान की निगाह से नहीं
देखते।
‘‘ भूखे की सूखी हडडी से,
वज्र बनेगा महाभयंकर,
ऋषि दधिची को इर्ष्या होगी,
नेत्र तीसरा खोलेंगे शंकर,
जी भर आज सता ले मुझको,
आज तुझे पूरी आजादी,
पर तेरे इन कर्मो में छिपकर,
बैठी है तेरी बरबादी,
कल ही तुझ पर गाज गिरेगा,
महल गिरेगा, राज गिरेगा,
नहीं रहेगी सत्ता तेरी,
बस्ती तो आबाद रहेगी,
जालिम तेरे इन जुल्मों की,
उनमें कायम याद रहेगी।
अन्न नहीं है, वस्त्र नहीं है,
और नहीं है हिम्मत भारी,
पर मेरे इस अधमुए तन में
दबी हुई है इक चिंगारी
जिस दिन प्रकटेगी चिंगारी
जल जायेगी दुनिया सारी
नहीं रहेगी सत्ता तेरी,
बस्ती तो आबाद रहेगी,
जालिम तेरे इन जुल्मों की,
उनमें कायम याद रहेगी।
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