" गुनाहगार के गले मैं फूल की माला,
गुरेज हमको नहीं गुजारिश किसकी थी ?
शातिरों के सर पे सेहरा हुकूमत की हिमायत थी
या सियासत की रवायत थी ---- बता ये आज तू मुझको
जमहूरियत के चेहरे पे ये श्याह भद्दी सी इबारत किसकी थी ?
हुक्मरानों से फैसले के फासले पे फैले हैं हम
यह सियासत हम से थी फिर रियासत किसकी थी ?
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