| मैं उत्पीड़क सत्ता को ललकार रहा हूँ , खूब समझता हूँ मैं खुद ही अपनी मौत पुकार रहा हूँ , मेरे शोणित की लाली से कुछ तो लाल धरा होगी ही , मेरे वर्तन से परिवर्तित कुछ तो परम्परा होगी ही | मैं जो उलटे -सीधे स्वर से गाता रहता करुण कथाएँ, सुनकर अकुलाती ही होगी व्यथितों की चिर मूक व्यथाएँ, मेरे स्वर से कुछ तो मुखरित जगती दुःख भरा होगी ही , मेरे शोणित की लाली से कुछ तो लाल धरा होगी ही || अमर शहीदों के शोणित से रंगी हुई है आज पताका , लहराता मैं चला बदलने इस उत्पीडित जग का खाका , मेरी लोल लहर से प्लावित कुछ तो वसुंधरा होगी ही , मेरी शोणित की लाली से कुछ तो लाल धरा होगी ही , मेरे वर्तन से परिवर्तित कुछ तो परम्परा होगी ही |||
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