संसद मे जो कुछ हुआ महिला आरक्षण के नाम पर ,
उसके पीछे सांसदों की मंशा महिला सशक्तिकरण की तो बिलकुल है ही नहीं .............
विपक्ष के नेता जेटली जी का अभिकथन --------
हमने पिछले ६३ वर्षों मे यह अछि तरह समझ लिया है की बिना आरक्षण के महिलाओं की स्थिति नहीं सुधर सकती है इसलिए हम इस बिल का समर्थन कर रहे है !..............
कैसी विडम्बना है
एक चहरे पे कई चहरे लगा लेते है लोग
पुनश्च -------
नक़ली चेहरा सामने आये असली फितरत छुपी रहे !
सचमुच मे कोंग्रेस और बी जे पी दोनों
अब तक समुदाय विशेष के वोट बैंक के आधारपर ही संसद के गलियारों मे पहुँचती रही है
वर्तमान मे वाम दल भी कमोवेश ऐसी ही परिस्थितियों से गुजर रहे है
कोई एसा मुद्दा भी नहीं मिल रहा था जिससे जनता को और मुर्ख बनाया जा सके
महिला आरक्षण को बंद पोटली से निकला ही इस लिए गया है की इस पर देश की आधी आवादी को बेवकूफ बनाया जा सकता है ..............
एसा मे इसलिए आधिकारिक रूप से कह सकता हूँ की पिछले ६३ वर्षों मे (उदहारण के लिए) दलित और पिछड़े लोगों कोदिए जाने वाले आरक्षण से उत्पन्न स्थिति को ले लीजिए----------------
५०% लोगों को यह सुविधा इस लिए दी गयी थी जिससे ये लोग सशक्त हो सकें !
मुख्य धरा मे जुड़ सकें , आत्मबल प्राप्त कर सकें !
क्या हुआ ?????????
शायद अधिकतम ५%लोगों का सशक्तिकरण होपाया हो >?
परन्तु मुख्य धारासे कितने लोग जुड़े है जानना चाहेंगे ????>>>>>>>
कोई नहीं ------------------उन्होंने अपनी एक अलग धारा बना ली है -------------हर प्रान्त मे अलग धडा.........
पुरे समाज का विद्वेष पूर्ण बंटवारा ..............
जानते ही होंगे ये सब क्यों हो रहा है ?????
वोट ..........वोट ...................और वोट राजनीती
करण स्पष्ट है -----------------आरक्षण के पीछे.......... पहले पहल भले ही मुद्दा उनके सशक्तिकरण या............. मुख्य धारा से जोड़ने का ही रहा होगा,,,,,,,,, परन्तु बाद मे इसे आगे बदने के पीछे मंशा सिर्फ और सिर्फ वोट राजनीती ही था.......है ........और रहेगा !
देश की किसे चिंता है
वर्तमान मे यही तो हुआ है .................
तीनों बड़ी पार्टियाँ वोटों के लिए तरस रही है !जैसे तैसे जुगाड़ करते है तब जाकर सत्ता की चासनी से जाकर चिपक पाते है !
कोंग्रेस का वोट बैंक (दलित पिछड़े और अल्पसंख्यक )उसके नाग-पाश से मुक्त हो चुकी है
भा ज पा का हिन्दू कार्ड (जो खास तौर पर राम मंदिर अयोध्या के नाम पर जुड़ गया था ) अब तुरुप का पत्ता नहीं रहा
लाल झंडे वाली पार्टियाँ भी सामाजिक समता के खोखले नारों को कब तक वोटों मे बदल पाते !
करण सिर्फ एक ही है ------------नक़ली चेहरे
कुछ गिने चुने लोगों और उनके कुनवे खानदान को सत्ता सिंघासन तक पहुचने और फिर वहीँ जमे रहने के घिनोने षड़यंत्र का पर्दाफाश जैसे ही हुआ
सब कुछ बिखर गया
पुनः सत्ता से चिपके रहने को कोई नया शिगूफा चाहिए था .............मिल गया ----------------स्त्री सशक्तिकरण........... समाज मे बरावरी का दर्जा.............
सदियों से दबी पिसी नारी............ अब ठीक वैसे ही उपना लक्ष पा लेगी
जैसे दलितों ने पा लिया .<>>>>>.....सम्पूर्ण समाज अब उन्हें सम्मान देने लगा है ...........सबका उत्थान हो गया है
अब कोई जातीय विद्वेष बच नहीं गया है...........६३ वर्ष हो चुके है ...............सभी दलित अब दलितपन से मुक्त हो चुके है .............
कैसी विडम्बना है की एक बड़े मुस्लिम राष्ट्र से भी ज्यादा आवादी इस देश के मुस्लिमों की है फिर भी वे अल्पसंख्यक है................वाह,क्या बात है .............कोई भारतीय भारत मे ही अल्पसंख्यक.?............. केवल इसी देश मे हो सकता है ............कहने को ये देश "धर्मनिरपेक्ष " है ..........ना..ना धर्म और सम्प्रदाय के आधार पर यहाँ कोई फैसला नहीं होता............ ये तो आपकी सोच का ही दोष है
आज के लिए सिर्फ इतना ही ................शेष अगले अंक मे >>>>>>>>>>>>
आचार्य
चुनाव और अपराधियों का गठबंधन अपरिहार्य चरित्र बन गया है.....अब डर यही है कि महिलाएं चुनाव जीतने के लिए राजनीती के इस स्वाभाव से कैसे दूर रह सकती हैं!! मुश्किल ये होगी कि शास्त्रीय और सामाजिक सुबूतों के आधार पर परिवार, समाज, देश के साथ वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के मानवीय पक्ष को, महिलाएं ही जिन्दा रखती रही हैं....लेकिन चुनावी राजनीती में लिपटी महिलाएं, कालांतर में इस सब से दूर होती जायेंगी और समाज में ईमानदारी, भावनात्मक लगाव, परम्पराओं के रक्षण और मानवता की कमी निश्चित तौर पर होने लगेगी.....ये कोई ज्योतिषीय भविष्यवाणी नहीं है बल्कि सामाजिक-व्याबहारिक बदलाव के सिद्धांत पर आधारित विचार है. जिससे आप असहमत भी हो सकते हैं.
ReplyDeleteहाँ मुझे महिला-विकास का विरोधी कतई न माने...क्योंकि महिलाओं के संसद में आने का कोई विरोध नहीं है....वो आएँगी तो जातिवाद-नस्लियता जैसी कमियों से निजात मिलेगी. संसद में भद्रता की वापसी हो पाएगी......अमर्यादित भाषा और व्यबहार पर एक हद तक रोक लग जायेगी. बाजारू मुद्दों के आलावा देश के असली मुद्दे भी संसद में उठेंगे.