आरक्षण

देश में जातीय आरक्षण के स्थान पर गरिवों को उन्नति करने के अवसर प्रदान करने चाहिए

जातीय आरक्षण से देश में जातीय विद्वेष फ़ैल रहा है जिससे समाज के टूटने का पूरा खतरा पैदा हो गया है!

इस देश के सर्वोच्च पदों तक पहुंचने के बाद भी यदि किसी का दलितपन दूर नहीं हो पाया है तो फिर इस देश से कभी दलित एवम दलितपन समाप्त नहीं होगा

अब तक देश की सरकारों ने दलित के नाम पर सिर्फ वोट राजनीती ही की है... अपना दलितपन दूर किया है... कुर्सी से चिपके रहने का नुस्खा है ये !

सोचो जब एक कर्मचारी आरक्षण के बल पर जूनियर होते हुए भी अपने सवर्ण सीनियर का बॉस बन जाता है तो कैसा गुजरता होगा उस सवर्ण पर ?

मेरी समझ मे तो ये ही नहीं आता क़िकोई सम्पूर्ण जाती दलित कैसे हो सकती है ! जब क़ि उसी जाती के अनेक लोग देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे हों ?

अगर ये मान भी लिया जाय क़ि कुछ सवर्णों ने कभी कुछ तथाकथित निम्न वर्ण के लोगों को सताया होगा जिससे दलित शब्द का उदय हुआ होगा

तो क्या मुझे कोई ये बताएगा क़ि पिता के किये किसी तथाकथित दुष्कर्म क़ी सजा बेटे को संविधान क़ी किस धरा के अंतर्गत दी जा सकती है ?

ये कौनसा प्राकृतिक न्याय है जिसमे पूर्वजों के किसी कृत्य क़ी सजा उनके वंसजों को ही नहीं वल्कि उसकी सम्पूर्ण जाती को दी जाती है ?

यदि ये उचित है तो अंग्रेजों को ऐसी कोई सजा क्यों नहीं दी गई जबकि उन्हों ने तो सम्पूर्ण देश को ही दलित बना दिया था ! लेकिन नहीं आज वे देश के आदर्श हैं !


देश क़ी राजनेतिक सोच तभी बदलेगी जब जन गण जागेगा !

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